Sunday, February 13, 2011

मैं आग बांटने आया हूँ
जिन्हें जलना हो वो साथ चलें
ये किसी बागीचे की सैर नहीं
मेरे रास्ते अंगार जलें

मैं उस बागीचे का माली हूँ
जिसका हर पौधा मुरझाया है
उस बचपन का मैं साथी हूँ
जहाँ सिर्फ सन्नाटा छाया है
मैं गीत सुनाने नहीं आया,
दहाड़ लगाने आया हूँ
जंजीर तोड़ के आया हूँ
जो दौड़ सकें मेरे साथ चलें
मेरे रास्ते अंगार जलें..

अभी नींद से नहीं जागे
तो एक दिन आँखें फूट जाएँगी
अभी देश नहीं संभाल सके
तो आगे संताने क्या पाएंगी
मैं ख्वाब बांटने नहीं आया
तलवार बांटने आया हूँ
जिन्हें लड़ना हो वो साथ चलें
मेरे रास्ते अंगार जलें..

हम नहीं जले तो एक दिन ये देश जल उठेगा,
इन अंगारों के पथ पर हर एक चल उठेगा..
.. प्रियंक