Thursday, November 18, 2010

चल यार सोते हैं..

चल यार सोते हैं.. स्वप्न संजोते हैं,
जो बीत गया, उसपे आज क्यों रोते हैं :)
समय की पतवार है, आयु को खेते हैं,
जो बीत गया, उसपे आज क्यों रोते हैं..

दुनिया एक बनिया है, व्यापार करती है,
जब तक कुछ लेना हो, व्यवहार करती है,
ये सुख तो जीवन में अनमोल होते हैं,
स्वजन समझ सबको, हर मोल देते हैं,
जो बीत गया, उसपे आज क्यों रोते हैं..

पुरानी बातों को हर हाल में भूलो,
जो होने वाला है, क्या बस में है बोलो?
पुराने बस्ते को क्यों लाद लेते हैं,
कल की चिंताओं को, क्यों आज लेते हैं?
जो बीत गया, उसपे आज क्यों रोते हैं..

जीवन के सब मोती मालाओं में रोपो,
हर सच को स्वीकारो, अपनाओ हर हर को,
जो भगवान की लीला स्वीकार करते हैं,
रब भी उस व्यक्ति को स्वीकार करते हैं,
सब कुछ जब उसका है, क्यों आज रोते हैं?
चल यार सोते हैं :)
: प्रियंक